हाँ ,
बस अभी-अभी तो आया था ,
एक ख्याल,
छोटा-सा ......ख्याल
एक नव अंकुर कि तरह
दिल कि ज़मीन को चीर
सर निकाल
बस पनपना ही चाहता था,
और ज्यादा भी क्या
चाहिए था उसे
बस
सांत्वना कि हलकी सी बौछार
उम्मीद के मंद मंद झोंकों का
हौले से सहला जाना ,
हिम्मत कि कुनकुनी धूप
और
दो हथेलियाँ जो उसे बचा पातीं ,
उसके नव पल्लवों को सहला
उसके पल्लवित हो पाने का
ख्याल के असलियत में बदल जाने का
हौंसला दे पातीं
पर.........
ज्यों ही तनिक अंगडाई - सी ले
मुंदी पलकों को खोल
देखा जो चंहु ओर
हर निगाह
एक सवाल बन
उस पर ही गढ़ी थी
सकुचा कर समेटना चाहा उसने
पत्तियों को भीतर अपने
अचानक
न जाने कहाँ से
चारों ओर सर उठाने लगीं
बंदिशों की दीवारें
नन्हा ख्याल ......... बेतरह डर
छिप जाना चाहता था दोबारा
दिल की कोख में
जहाँ से जन्मा था वो
तभी देखीं दो हथेलियाँ , बढती अपनी ओर
कुछ उम्मीद-सी जगी
अपने पनप पाने की
पर
सहारा देने वाली वाली
वो हथेलियाँ
बेदर्दी से कुचल रहीं थीं उसे
इस तरह जन्मते ही
फ़ना हो गया
वो एक छोटा-सा ख्याल............
बस अभी-अभी तो आया था ,
एक ख्याल,
छोटा-सा ......ख्याल
एक नव अंकुर कि तरह
दिल कि ज़मीन को चीर
सर निकाल
बस पनपना ही चाहता था,
और ज्यादा भी क्या
चाहिए था उसे
बस
सांत्वना कि हलकी सी बौछार
उम्मीद के मंद मंद झोंकों का
हौले से सहला जाना ,
हिम्मत कि कुनकुनी धूप
और
दो हथेलियाँ जो उसे बचा पातीं ,
उसके नव पल्लवों को सहला
उसके पल्लवित हो पाने का
ख्याल के असलियत में बदल जाने का
हौंसला दे पातीं
पर.........
ज्यों ही तनिक अंगडाई - सी ले
मुंदी पलकों को खोल
देखा जो चंहु ओर
हर निगाह
एक सवाल बन
उस पर ही गढ़ी थी
सकुचा कर समेटना चाहा उसने
पत्तियों को भीतर अपने
अचानक
न जाने कहाँ से
चारों ओर सर उठाने लगीं
बंदिशों की दीवारें
नन्हा ख्याल ......... बेतरह डर
छिप जाना चाहता था दोबारा
दिल की कोख में
जहाँ से जन्मा था वो
तभी देखीं दो हथेलियाँ , बढती अपनी ओर
कुछ उम्मीद-सी जगी
अपने पनप पाने की
पर
सहारा देने वाली वाली
वो हथेलियाँ
बेदर्दी से कुचल रहीं थीं उसे
इस तरह जन्मते ही
फ़ना हो गया
वो एक छोटा-सा ख्याल............
वाह!!!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
मगर ख्याल हार नहीं मानता...वो फिर जन्मेगा ..और कविता का सृजन होगा ज़रूर...
शुभकामनाएँ.
बहुत ही बढ़िया मैम!
ReplyDeleteसादर
बस अभी-अभी तो आया था ,
ReplyDeleteएक ख्याल,
छोटा-सा ......ख्याल
एक नव अंकुर कि तरह
दिल कि ज़मीन को चीर
सर निकाल
बस पनपना ही चाहता था,
और ज्यादा भी क्या
चाहिए था उसे ... बहुत गहन पर सरल
रश्मि जी, यशवंत जी एवं विद्या जी , आप सभी का धन्यवाद ! हार्दिक आभार !!
ReplyDeleteरोचक चित्रमयी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति शालिनी जी, धन्यवाद! हलचल से पहली बार आना हुआ आपके ब्लौग पर, अच्छा लगा.
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/02/blog-post_09.html
ReplyDeleteवाह...कितनी सरलता से इतनी गूढ़ बातें कह दी...सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteधन्यवाद स्वाति जी !
Deletebahut sundar kavita ,,
ReplyDeletebehtarin abhivykti...
रीना जी , धन्यवाद !
Deleteशायद ख्याल ऐसे ही जन्मते हैं और देखते ही देखते वो इच्छाओं के बड़े पेड़ बन जाते हैं ।
ReplyDeleteइमरान जी, शायद कुछ ख्यालों की किस्मत में इच्छाओं का वृक्ष बन जाना लिखा हो पर कुछ ख्याल जो ह्रदय में ही दम तोड़ देते है...बस उन्ही बेजुबान ख्यालों के नाम ............... रचना पर गौर करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
Deleteकितनी निर्ममता से कुचला गया ख्याल .. बहुत भावभीनी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति जो अपने आपमें बहुत कुछ कह रही है...
ReplyDeleteधन्यवाद पल्लवी जी !
Deleteबहुत गहन सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteधन्यवाद कैलाश जी....रचना पर ध्यान देने के लिए आभार!
Deleteछोटा किन्तु बड़ा खुबसूरत ख़याल..
ReplyDeleteन जाने कहाँ से
ReplyDeleteचारों ओर सर उठाने लगीं
बंदिशों की दीवारें
नन्हा ख्याल ......... बेतरह डर
छिप जाना चाहता था दोबारा
दिल की कोख में
जहाँ से जन्मा था वो
Nari jeevan ka sabse bada abhishap BANDISH ....behad prabhavshali rachna ....manh sthitiyo ka sajeev rekankan ..bahut bahut badhai
gahan anubhuti v sarthak post hae. bdhai.
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन लिए ...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन कविता है.
ReplyDeleteवाह क्या बात हैँ बहुत सुंदर रचना ये पंक्ति दिल को छु गई ...
ReplyDeleteसहारा देने वाली वाली
वो हथेलियाँ
बेदर्दी से कुचल रहीं थीं उसे
इस तरह जन्मते ही
फ़ना हो गया
वो एक छोटा-सा ख्याल............