शिव
कैसे हो पाता है संभव तुमसे
एक साथ होना
संहारक और संरक्षक
वैरागी और सांसारिक
प्रेम में लिप्त होते हुए निर्लिप्त
सब में होते हुए भी निस्पृह
सम्पूर्ण होते हुए भी असम्पृक्त
जीवन का अमृत, मृत्यु गरल
धारण करना एक साथ
कैसे हो पाता है संभव तुमसे
शिव .....
कैसे हो पाता है संभव तुमसे
एक साथ होना
संहारक और संरक्षक
वैरागी और सांसारिक
प्रेम में लिप्त होते हुए निर्लिप्त
सब में होते हुए भी निस्पृह
सम्पूर्ण होते हुए भी असम्पृक्त
जीवन का अमृत, मृत्यु गरल
धारण करना एक साथ
कैसे हो पाता है संभव तुमसे
शिव .....
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २९ जनवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारी' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
धन्यवाद ध्रुव जी
Deleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २९ जनवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारी' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार', सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
बहुत सुंदर ....।
ReplyDeleteधन्यवाद शुभा जी
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी
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