तुम ही चक्र, तुम ही धुरी।
तुम ही पथ, तुम ही गति।
मेरे पथ का आदि तुम,
तुम ही हो हर पथ की इति।
अपूर्णता का तुमसे भान,
संपूर्णता का तुम निधान।
मेरा हरेक विधान तुमसे,
तुम ही हो हर एक विधि।
क्यों नहीं उलटता क्रम यह,
क्यों नहीं पलटती यह नियति।
कभी तुम मेरी करो परिक्रमा
कभी बन रहूँ मैं तुम्हारी धुरी।
~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
तुम ही पथ, तुम ही गति।
मेरे पथ का आदि तुम,
तुम ही हो हर पथ की इति।
अपूर्णता का तुमसे भान,
संपूर्णता का तुम निधान।
मेरा हरेक विधान तुमसे,
तुम ही हो हर एक विधि।
क्यों नहीं उलटता क्रम यह,
क्यों नहीं पलटती यह नियति।
कभी तुम मेरी करो परिक्रमा
कभी बन रहूँ मैं तुम्हारी धुरी।
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शालिनी रस्तौगी
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