Tuesday, 23 January 2018

अभिमन्यु

अभिमन्यु
बनता जा रहा
आज का युवा
अपने ही चारों ओर
अपने ही द्वारा रचित
चक्रव्यूह में
अपने अंतर्द्वंद्वों को झेलता,
खुद से लड़ता,
स्वयं हथियार बन वार करता
स्वयं ढाल बन बचता।
स्वयं छिन्न-भिन्न हो, निशस्त्र होता।
स्वयं रथचक्र बन
स्वरक्षा हेतु घूमता ,
बनता जाता
क्या नियति के हाथों
इस बार भी धराशायी होगा?
या रण विजेता बन
लौटेगा सदर्प?
अभिमन्यु !!
~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी

7 comments:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'बुधवार' २४ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'बुधवार' २४ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  3. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'बुधवार' २४ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  4. बहुत खूबसूरत भावों से सजी रचना।

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  5. सुन्दर रचना। बधाई!!!

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  6. आज के यथार्थ को बयान करती भावपूर्ण रचना..

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  7. बहुत ही सही लिखा आपने आदरणीय शालिनी जी --- आज का युवा कई चक्रव्यूहो से घिरा आक्रांत है | सार्थक रचना --

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