बार-बार चुभ रही है
आँखों में
उसकी खाली सीट
उठ रहे हैं मन में कई सवाल |
क्या हुआ होगा ?
किस वज़ह से उठाया होगा
उसने यह कदम?
ऐसा कौन सा डर था जिससे डर कर उसने
जीवन के सबसे बड़े डर
मृत्यु को
किया होगा अंगीकार?
क्या वास्तव में
मौत से भी भयंकर है
जीवन का डर?
यही बात चुभ रही मन में बार- बार
क्यों नहीं किया हौंसला
अनुत्तीर्ण होने का?
सिर्फ एक परीक्षा के लिए
क्यों हार गया वह जीवन ?
कोई भी आकांक्षा
माँ-बाप की अपेक्षा
बढ़कर तो नहीं थी जीवन से उसके!
क्यों नहीं समझ पाया वह
उनकी आँखों का कोई भी स्वप्न
इस दुस्वप्न पर तो नहीं टूटता था|
अभी तो बस आरम्भ ही था - जीवन रण का
क्यों युद्ध से पहले ही उसने
डाल दिए हथियार
यही सोचता मन बार-बार.....
आँखों में
उसकी खाली सीट
उठ रहे हैं मन में कई सवाल |
क्या हुआ होगा ?
किस वज़ह से उठाया होगा
उसने यह कदम?
ऐसा कौन सा डर था जिससे डर कर उसने
जीवन के सबसे बड़े डर
मृत्यु को
किया होगा अंगीकार?
क्या वास्तव में
मौत से भी भयंकर है
जीवन का डर?
यही बात चुभ रही मन में बार- बार
क्यों नहीं किया हौंसला
अनुत्तीर्ण होने का?
सिर्फ एक परीक्षा के लिए
क्यों हार गया वह जीवन ?
कोई भी आकांक्षा
माँ-बाप की अपेक्षा
बढ़कर तो नहीं थी जीवन से उसके!
क्यों नहीं समझ पाया वह
उनकी आँखों का कोई भी स्वप्न
इस दुस्वप्न पर तो नहीं टूटता था|
अभी तो बस आरम्भ ही था - जीवन रण का
क्यों युद्ध से पहले ही उसने
डाल दिए हथियार
यही सोचता मन बार-बार.....
कविताए जीवन के करीब है , अच्छा लिखती है आप , लिखे भी पढे भी
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी
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