Saturday, 2 April 2016

फागुन के रंगों में रंगी दो कुण्डलियाँ

फागुन के रंगों में रंगी दो कुण्डलियाँ
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
वियोग का रंग
~~~~~~~~
धरती फागुन में सजी, जोगन जी संताप।
विरहा अगनी तन जले, उड़े बूँद बन भाप।।
उड़े बूँद बन भाप, सखी की हँसी ठिठोली।
करे जिया पर चोट, धँसे जी में बन गोली।।
साजन-सजनी संग, आँख विरहन की भरती।
पड़ती रंग फुहार, रहूँ मैं धीरज धरती ।।
~~~~~~~~~
संयोग का रंग
~~~~~~~~~
बनठन कैसी सज गई, खिला धरा सुरचाप।
रंग फुहारें तन पड़ीं, मिटा हिया का ताप ।।
मिटा हिया का ताप, कि खेली उन संग होली।
भीज गए सब अंग, खिला मन बन रंगोली।।
मन ही मन में राग, दिखाए झूठी अनबन ।
पिया मिले जब संग, फाग मैं खेलूँ बनठन ।।
~~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी

1 comment:

  1. आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 04/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
    अंक 262 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Blogger Tips And Tricks|Latest Tips For Bloggers Free Backlinks