कितने सूत्र
गुंथे परस्पर
और बन गयी
एक डोरी
बंध गए
मजबूत बंधन
और फिर किसी एक बात पर
ज़रा से अविश्वास पर
चटक कर टूटा क्या एक सूत्र
ढीले पड़ गए सब
रिश्तों के बंध
बेगाने बनते गए यूँ सम्बन्ध
लो देख लो कैसे
एक एक कर
टूट गए
जाने कितने सूत्र
कई दुश्मनों मे बडा खतरनाक दुश्मन 'अविश्वास' को कविता मे सूत्रबद्ध करना सार्थकता का परिचायक है। असल परीक्षा अविश्वासों के बाद मौन भरौसा बनाए रखने में होती है। टूटते सूत्रों पर चर्चा करने लगे तो और बिखराव आता है। अतः बचे हुए को पकडे रखने की जरूरत होती है।
ReplyDeleteसार्थक व समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए धन्यवाद डॉ.विजय जी
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12-03-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1915 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार दिलबाग विर्क साहब !
Deleteसूत्र…
ReplyDeleteछू गये।
धन्यवाद :)
धन्यवाद रश्मि जी
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ReplyDeleteबहुत खूब,बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
धन्यवाद मदन मोहन जी !!
Deleteरिश्ते की डोरी कब टूट जाए पता ही नहीं चलता... बहुत सुन्दर भाव.
ReplyDeleteशुक्रिया डॉ, जेन्नी शबनम जी !!!
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