Tuesday, 10 March 2015

सूत्र

कितने सूत्र 
गुंथे परस्पर 
और बन गयी 
एक डोरी 
बंध गए 
मजबूत बंधन 
और फिर किसी एक बात पर 
ज़रा से अविश्वास पर 
चटक कर टूटा क्या एक सूत्र 
ढीले पड़ गए सब 
रिश्तों के बंध 
बेगाने बनते गए यूँ सम्बन्ध
लो देख लो कैसे 
एक एक कर 
टूट गए 
जाने कितने सूत्र 


10 comments:

  1. कई दुश्मनों मे बडा खतरनाक दुश्मन 'अविश्वास' को कविता मे सूत्रबद्ध करना सार्थकता का परिचायक है। असल परीक्षा अविश्वासों के बाद मौन भरौसा बनाए रखने में होती है। टूटते सूत्रों पर चर्चा करने लगे तो और बिखराव आता है। अतः बचे हुए को पकडे रखने की जरूरत होती है।

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    1. सार्थक व समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए धन्यवाद डॉ.विजय जी

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12-03-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1915 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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    1. मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार दिलबाग विर्क साहब !

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  3. सूत्र…
    छू गये।
    धन्यवाद :)

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    1. धन्यवाद रश्मि जी

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  4. बहुत खूब,बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.

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    1. धन्यवाद मदन मोहन जी !!

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  5. रिश्ते की डोरी कब टूट जाए पता ही नहीं चलता... बहुत सुन्दर भाव.

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    1. शुक्रिया डॉ, जेन्नी शबनम जी !!!

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