निज सुख, निज पीड़ा से कैसे
तुमको एकाकार करूँ
उद्द्वेलित, आडोलित मन के
संप्रेषित कैसे विचार करूँ
मैं अपनी करुणा जीती हूँ,
उल्लास रहे तुम जी अपना |
मैं मानूँ ठोस धरातल है
तुम मानो जग निरा सपना |
सुख निद्रा से झंझोड़ तुम्हारे, क्यों सपने निराधार करूँ |
हैं साथ तुम्हारे वे पल-छिन,
जो मेरे जीवन में न आए |
मैंने भी अपनी स्मृति में,
निज दुःख,निज उल्लास छिपाए |
तुम्हारे ह्रदय के भावों का, कैसे मैं साक्षात्कार करूँ |
जो मेरी बातों में अपने से
कुछ पल तुमको मिल जाएँ
तुम चुन कर उनको रख लेना
जो बातें ह्रदय को छू जाएँ
कुछ पल जी कर मैं तुम में, कविता अपनी साकार करूँ
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