वह दिखाती है तमाशा
लाल बत्ती पर
गाड़ियों के रुकते ही
शुरू हो जाती हैं
उसकी कलाबाजियां...
शरीर को तोड़ मरोड़ जब
लोहे के एक छोटे से छल्ले में से
निकल जाती है समूची वो ....
हाँ, अभ्यस्त है
लाल बत्ती पर
गाड़ियों के रुकते ही
शुरू हो जाती हैं
उसकी कलाबाजियां...
शरीर को तोड़ मरोड़ जब
लोहे के एक छोटे से छल्ले में से
निकल जाती है समूची वो ....
हाँ, अभ्यस्त है
उसका शरीर
मुड़ने, तुड़ने, सिकुड़ने का
क्या पता कितनी बार उसने
"आज मैं काम नहीं करुँगी". कहने पर
शरीर तुडवाया होगा
कितनी ही बार गाड़ियों में बैठे
बच्चों के हाथों में
खिलौने देख
सिक्के के साथ, अपनी मुट्ठी में
सिकोड़ लिया होगा
अपनी चाहतों का आसमान ...
दुत्कार खाने के बाद भी
देर तक मुड़-मुड़ लौट वही
जातीहैं हसरतें उसकी
सिग्नल हरा होते ही फिर से
स्पीड पकड़ती गाड़ियों को देख
फुटपाथ पर बैठी सोचती वह
... फिर एक बार और ...
फिर एक बार और
.. और न जाने, कितने ...
... एक बार और ....
बस .. अब नहीं हो पायेगा ..
अब और नहीं करुँगी करतब ..
सोचती तो कई बार है पर ....
जब भूखे पेट में उगते हैं,
चुभते हैं कैक्टस
तो फिर से
वो दिखाती है तमाशा ....
मुड़ने, तुड़ने, सिकुड़ने का
क्या पता कितनी बार उसने
"आज मैं काम नहीं करुँगी". कहने पर
शरीर तुडवाया होगा
कितनी ही बार गाड़ियों में बैठे
बच्चों के हाथों में
खिलौने देख
सिक्के के साथ, अपनी मुट्ठी में
सिकोड़ लिया होगा
अपनी चाहतों का आसमान ...
दुत्कार खाने के बाद भी
देर तक मुड़-मुड़ लौट वही
जातीहैं हसरतें उसकी
सिग्नल हरा होते ही फिर से
स्पीड पकड़ती गाड़ियों को देख
फुटपाथ पर बैठी सोचती वह
... फिर एक बार और ...
फिर एक बार और
.. और न जाने, कितने ...
... एक बार और ....
बस .. अब नहीं हो पायेगा ..
अब और नहीं करुँगी करतब ..
सोचती तो कई बार है पर ....
जब भूखे पेट में उगते हैं,
चुभते हैं कैक्टस
तो फिर से
वो दिखाती है तमाशा ....
पेट की भूख जो न कराए कम है
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29-05-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1627 में दिया गया है |
ReplyDeleteआभार
पापी पेट ही कराती है तमाशा
ReplyDeletenew post ग्रीष्म ऋतू !
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील उदगार...
ReplyDeleteकाफी दिनों बाद आना हुआ इसके लिए माफ़ी चाहूँगा । बहुत बढ़िया लगी पोस्ट |
ReplyDeleteपेट की जलन कितना कुछ करने को मजबूर कर देती है ... जीवन का सच है ये कडुवा सच ...
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