अच्छा होता है
कभी - कभी
धारा के साथ - साथ बहना
बिना प्रतिरोध
जो घट रहा है
उसे वैसे ही घटने देना
क्यों हर बार बाँध बांधे जाएँ?
क्यों हर बार धार को मोड़ा जाए?
क्यों धारा के विपरीत बहने का हमेशा
संघर्ष किया जाए ?
.... क्यों नहीं
जो घट रहा है उसे घट जाने दें,
जो बन रहा है उसे बन जाने दें
जो मिट रहा उसे मिट जाने दें
आखिर नियति को निर्धारित करने वाले
हम तो नहीं
तो क्यों किसी बात के लिए
दोष दें स्वयं को ?
क्यों औरों के लिए
रोक लें स्वयं को ?
न भूत पर वश, न भविष्य अपने हाथ
तो वर्तमान में जीना
जो हो रहा उसे होने देना
कभी कभी
अच्छा होता है ........
कभी - कभी
धारा के साथ - साथ बहना
बिना प्रतिरोध
जो घट रहा है
उसे वैसे ही घटने देना
क्यों हर बार बाँध बांधे जाएँ?
क्यों हर बार धार को मोड़ा जाए?
क्यों धारा के विपरीत बहने का हमेशा
संघर्ष किया जाए ?
.... क्यों नहीं
जो घट रहा है उसे घट जाने दें,
जो बन रहा है उसे बन जाने दें
जो मिट रहा उसे मिट जाने दें
आखिर नियति को निर्धारित करने वाले
हम तो नहीं
तो क्यों किसी बात के लिए
दोष दें स्वयं को ?
क्यों औरों के लिए
रोक लें स्वयं को ?
न भूत पर वश, न भविष्य अपने हाथ
तो वर्तमान में जीना
जो हो रहा उसे होने देना
कभी कभी
अच्छा होता है ........
कभी कभी नहीं ज्यादातर :)
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति ।
वाकई .....!!!
ReplyDeleteलहर के सहारे खुद को छोड़ देना अच्छा होता है विशेष कर जब समय का पता ही नहीं क्या होने वाला है ... भावमय प्रस्तुति ...
ReplyDeleteअत्यंत ही गहन और सशक्त रचना |
ReplyDeleteबहुत खूब बहुत ही लाज़वाब अभिव्यक्ति आपकी। बधाई
ReplyDeleteएक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''हम वीर धीर''
आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (20-04-2014) को ''शब्दों के बहाव में'' (चर्चा मंच-1588) पर भी होगी!
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर
ReplyDeleteसोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !
साक्षी भाव से जीना इतन असहज कहाँ होता... भावपूर्ण रचना, बधाई.
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