फिर कभी पास बैठेंगे, सुनाएँगे हाल ए दिल
कुछ अपने दिल की कहेंगे, कुछ तुम्हारी सुनेंगे
कि भरा हुआ तो है दिल में ग़ुबार मगर
मिजाज़ अपना आज कुछ ठीक नहीं है
खुशग़वार मौसम पे रंगीन रुबाइयाँ कहेंगे
खिलते फूलों पे शबनम से तराना लिखेंगे
कि ज़रा बदल लेने तो दो इस मौसम को
मिजाज़ रुत का अभी , कुछ ठीक नहीं है
नज़दीकियों से ज़माने को होता है मुहब्बत का शुबह
बात करते हो पास आके तुम बड़े नाज़ औ अंदाज़ से
कि ग़लत न समझ बैठे कहीं संगदिल ये जहाँ
पाक़नीयत हो तुम मगर, निगाह ए जहाँ ठीक नहीं है
हर किसी से मिलते हो तुम तो, बड़ी फ़राक दिली से
दो पल में बना लेते हो हरेक को हमराज़ अपना
कि इस क़दर अपनाहत का भी ज़माना नहीं ए दोस्त
शातिरों की दुनिया में, भोलापन इतना भी ठीक नहीं है
नज़दीकियों से ज़माने को होता है मुहब्बत का शुबह
ReplyDeleteबात करते हो पास आके तुम बड़े नाज़ औ अंदाज़ से
बहुत खूब मैम!
सादर
धन्यवाद यशवंत जी!
Deleteकि इस क़दर अपनाहत का भी ज़माना नहीं ए दोस्त
ReplyDeleteशातिरों की दुनिया में, भोलापन इतना भी ठीक नहीं है
bahut khoob, badhai
धन्यवाद शुक्ल जी !
Deleteकि इस क़दर अपनाहत का भी ज़माना नहीं ए दोस्त
ReplyDeleteशातिरों की दुनिया में, भोलापन इतना भी ठीक नहीं है
बहुत सुंदर.................
बहुत अच्छी रचना...
बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteनज़दीकियों से ज़माने को होता है मुहब्बत का शुबह
ReplyDeleteबात करते हो पास आके तुम बड़े नाज़ औ अंदाज़ से.....
थोड़ी दूरियाँ बना के रखें.....
सुंदर...
धन्यवाद पूनम!
Deleteखुशग़वार मौसम पे रंगीन रुबाइयाँ कहेंगे
ReplyDeleteखिलते फूलों पे शबनम से तराना लिखेंगे
.....कोमल भावनाएँ शब्दों से बाहर झांकती हुई सुन्दर कविता, भाव भरे शब्दों के साथ !!!
धन्यवाद संजय!
Delete"खुशग़वार मौसम पे रंगीन रुबाइयाँ कहेंगे
ReplyDeleteखिलते फूलों पे शबनम से तराना लिखेंगे
कि ज़रा बदल लेने तो दो इस मौसम को
मिजाज़ रुत का अभी , कुछ ठीक नहीं है"
बहुत खूबसूरत !
आज 15/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गया हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
वाह ...बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी!
Deleteकि ज़रा बदल लेने तो दो इस मौसम को
ReplyDeleteमिजाज़ रुत का अभी , कुछ ठीक नहीं है"
बहुत सुंदर रचना...
धन्यबाद हबीब जी!
Deleteहर किसी से मिलते हो तुम तो, बड़ी फ़राक दिली से
ReplyDeleteदो पल में बना लेते हो हरेक को हमराज़ अपना
कि इस क़दर अपनाहत का भी ज़माना नहीं ए दोस्त
शातिरों की दुनिया में, भोलापन इतना भी ठीक नहीं है
बहुत ही खुबसूरत है ये शेर....सुभानाल्लाह ।
बहुत बहुत शुक्रिया इमरान जी!
Deleteबहुत सुन्दर...पर अंतिम ४ पंक्तियाँ कमाल की है.
ReplyDeleteशुभकामनायें!!
dhanyvaad santosh ji!
Deleteबहुत प्यारी ग़ज़ल ...
ReplyDeleteएक एक पंक्ति कमाल की है
shukriya Anjani kumar ji!
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