मन की आह, जब राह नहीं पाती
भटकती सी फिरती है
चौराहे पर खड़ी
दिग्भ्रमित सी
चहुँ ओर तकती है राह
हर दिशा है अन्जानी
हर गली है बेगानी सी
गैरों से पूछती है पता कभी
गलियारों में घूमती बेवज़ह कभी
और कभी
मील के पत्थर पर बैठ कभी
राहगीरों के पदचिह्न गिनती है
कोई तो राह होगी
जो मंज़िल तक ले जायेगी
और चैन पा जाएगी
marmsparshi!
ReplyDeleteBahut soonder.
thanx sushila
ReplyDeletemann ka bahut hi marmik chitran kiya hai....bahut khoob.....
ReplyDeletethanks poonam.... aap ke comments se hi haunsla milta hai .
ReplyDeletenice ;-)
ReplyDeletecomputer-world4.blogspo.com