Saturday 28 May 2011

समय

समय


रेत की मानिंद
हाथों से फिसल जाता है
कभी बन के  पत्थर
राह में अड़ जाता है


कभी बीत जाते है सालों
ज्यों बीता हो एक पल
कभी एक पल बीतने में
 सालों लगाता है


बन कभी मरहम ये
भर देता है पुराने ज़ख्म
कभी कुरेद पुराने ज़ख्मों को
ये नासूर बना जाता है


जीता वही शख्स जिसने
पा लिया इसपे काबू
वर्ना तोह यही लोगों को
अपना गुलाम बनाता है


यही वख्त  कभी बढ़ के खुद
खोल देता है नई राहें
और कभी हरेक राह पर
दीवार नई उठाता है


क्यों कर ना हो मगरूर
क्यों किसी के आगे झुके
ए दोस्त हर शै को ये
सामने अपने झुकाता है

4 comments:

  1. बहुत खूब .......
    बहुत ही अच्छा लिखा है ...

    ReplyDelete
  2. कभी बीत जाते है सालों
    ज्यों बीता हो एक पल
    कभी एक पल बीतने में
    सालों लगाता है


    बन कभी मरहम ये
    भर देता है पुराने ज़ख्म
    कभी कुरेद पुराने ज़ख्मों को
    ये नासूर बना जाता है
    bahut sunder ...............!!

    ReplyDelete
  3. समय बड़ा बलवान है और इसकी महिमा को आपने बखूबी बयान किया है। बहुत बढिया!

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Blogger Tips And Tricks|Latest Tips For Bloggers Free Backlinks