Thursday 19 September 2024

बेमुकम्मल


बहुत जरूरी हैं ....
कुछ बेतरतीबियाँ,
थोडा बिखराव, थोडा बेशऊरापन भी|
थोडा बेमुकम्मल होना,
बने रहने देता है हमें ... इंसान|
इंसान ... जिसमें सुधार की है थोड़ी गुंजाइश,
इंसान ... जो मुक़म्मल होने के लिए करता आज़माइश,
इंसान ... जो अभी नहीं बना है देवता,
इंसान ... जिसमें नहीं है प्रतिमाओं से सुघढ़ता |
अपनी हर ग़लती के बाद पछताना,
फिर सुधरने के लिए कुछ और ज़ोर लगाना,
कभी अपने बिखराव में ही सिमट जाना,
कभी सब कुछ समेटने की चाहत में बिखर जाना|
यही अधूरापन,
यही पूरा होने की जद्दोजहद,
नहीं होने देती ऊसर,
बनाए रखती है नमी,
जिलाए रखती है आस ....
नई कोंपले फूटने की ... 
बंजर ज़मीन पर
~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी 

 

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