Thursday 19 September 2024

सरस्वती (दूसरे पक्ष का पक्ष)

 सरस्वती (दूसरे पक्ष का पक्ष)

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स्त्री ने पुरुष से कहा-
‘तुमने ही दिया है मुझे
.....सारा दर्द-सारी पीड़ा’|
फिर उसने खोली,
अपने आरोपों की पोटली,
और एक-एक कर गिनवाए,
वे सभी ज़ख्म,
जो दिए थे पुरुष ने उसे ... कभी |
उन आरोपों की झड़ी और
स्त्री आँखों से बहती गंगा-जमुना में,
भीगा पुरुष ... अपराधबोध से ग्रसित,
सिर झुका सुनता रहा ... बहुत देर तक,
चुपचाप .... अपनी पीड़ा को समेटे|
पर .... उसके पास भी थे अपने दर्द,
कुछ अनकही शिकायतें,
कुछ बहुत पुराने ज़ख्म ...
उसके अंतस में बह रही थी,
दर्द की एक नदी .... जो,
आँखों से बह निकलने को,
उफनी, मचली, बार-बार टकराई ...
उस उपरी चट्टानी परत से,
जिसे रचा था पुरुष ने ही,
अपने चारों ओर..... पर,
न तोड़ पाई वह ... आँखों पर बँधे बाँध |
और फिर एक बार,
पुरुष का दर्द ....
बन गया उसकी चिल्लाहट,
जो दुनिया ने सुनी |
फिर नज़र नहीं आई किसी को
स्त्री की आँखों से बहती,
गंगा-जमुना की बाढ़ के आगे,
पुरुष अंतस में,
अदृश्य हो बह रही ...
सरस्वती !!
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शालिनी रस्तौगी

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