Friday, 17 September 2021

ग़ज़ल - क़यामत हो गई

 



ख्वाब टूटे आस बिखरी , क्या क़यामत हो गई|

हाथ से तक़दीर फिसली, क्या क़यामत हो गई|


कल में रहे, कल में जिए, कल की बनाई योजना,

कल न आया आज ही, ये तो क़यामत हो गई|


दौड़ती  थी ज़िन्दगी , दौड़ता इंसान था

थम गया पल में सभी कुछ, क्या क़यामत हो गई|


लोग कहते हों भले, जो होना है हो कर रहे ,

अनहोनियाँ होने लगीं पर, क्या क़यामत हो गई|

शालिनी रस्तौगी

 



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