ग़ज़ल
अजी आसाँ कहाँ इतने, नौकरी के निवाले हैं,
हज़ारों रोग ले दिल पे, चंद सिक्के सँभाले हैं|
तेरी आँखों में आँसू हैं, तो अपने दिल में छाले
हैं,
कि वो छलकें, कि ये फूटें, छलकने ग़म के प्याले
हैं|
यकीं औ सब्र है झूठा, इबादत झूठ है उसकी,
तेरी रहमत पे ए मालिक, जो झट उँगली उठा ले है|
लगें हैं बोझ दो रोटी, बाप-माँ की उन्हें
अक्सर,
जो औलादें विरासत में, उनकी दौलत सँभाले हैं|
दिखेगी इश्क़ की सच्चाई भला कैसे बताओ तो,
नज़र में शक़-शुबह के जब, पड़े तेरे ये जाले हैं|
मिला है जो जिसे जितना, ये अपनी-अपनी किस्मत
है,
किसी का दिन अँधेरा है, कहीं शब भर उजाले हैं|
उतर गहराई में मोती, अगर जो पाना चाहे तू,
लगेगा हाथ बस कीचड़, क्यों उथला जल खँगाले है|
शालिनी रस्तौगी
गुरुग्राम
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