जिस्मानी काले से
रूहानी सफ़ेद तक,
हार रंग में सजा है
इश्क़ तेरा
कभी सूफियाना बन
हरा कर देता है दिल की ज़मीं को,
कभी पूजन बन
केसरिया मन कर जाता है|
कहीं मिलन का लाल,
कहीं जुदाई का धूसर,
कभी जलन में जामुनी रंग जाता है
इश्क़ तेरा
...
कहीं आसमानी बन
सागर औ फ़लक तक बिखर जाता है,
कभी गुलाबी मुस्कान बन
होंठों में सिमट आता है,
कभी सितारों की चमक लिए
आँखों में झिलमिलाता है,
कहीं सरसों की पीली बाली-सा
दिल को सरसराता है,
चूनर की धानी धनक से
पायल की रुपहली खनक तक,
हर रंग में नज़र आता है
इश्क़ तेरा
हाँ, सतरंगी है इश्क़ तेरा ....
शालिनी रस्तौगी
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सतरंगी है इश्क़ तेरा
ReplyDeleteजिस्मानी काले से
रूहानी सफ़ेद तक,
हार रंग में सजा है
इश्क़ तेरा....
बहुत ही सुंदर ख्यालों से सजी रचना।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआप की रचना को शुक्रवार 22 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना ।
ReplyDeleteवाह! उत्कृष्ट रचना का ख़ूबसूरत शब्द-विन्यास।
ReplyDeleteबिंबों और प्रतीकों के साथ रंगों को ख़ूबसूरती प्रदान करती मनमोहक रचना।
बधाई एवं शुभकामनाएं। लिखते रहिए।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाएं
वाह !!बहुत सुंंदर ।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteइश्क को नये अनुपम रंगों में परिभाषित करती सुंदर रचना | बधाई एवं शुभकामना --
ReplyDeleteसतरंगी इश्क.....
ReplyDeleteइश्क का रंग रंग बहुत सुन्दर....
वाह!!!