प्राण वायु आदर्श की, होती दिन-दिन क्षीण|
मानवता का दम घुटा, बढ़ा स्वार्थ संकीर्ण||
बढ़ा स्वार्थ संकीर्ण, हो किस पर क्या विश्वास|
देते थे जो प्राण, छीनते आज वे श्वास||
नैतिकता औ मूल्य, घायल बिंध लालच बाण|
प्राण-वायु हर गई, अबोध शिशुओं के प्राण ||
मानवता का दम घुटा, बढ़ा स्वार्थ संकीर्ण||
बढ़ा स्वार्थ संकीर्ण, हो किस पर क्या विश्वास|
देते थे जो प्राण, छीनते आज वे श्वास||
नैतिकता औ मूल्य, घायल बिंध लालच बाण|
प्राण-वायु हर गई, अबोध शिशुओं के प्राण ||
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.