तुमने बोला... प्रेम लिखो
और मैंने बड़े जतन से
दिल की धड़कन लिख दी....
आँखों की उलझन,
रूह की तड़पन,
प्रीत में डूबे भाव लिखे ...
जो कहे नहीं थे अब तक वो
भीगे-भीगे जज़्बात लिखे।
पलकों पर ठहरा इंतेज़ार लिखा,
उम्र भर का क़रार लिखा,
आँखों के झिलमिल ख़्वाब लिखे,
लब पर ठहरे अल्फ़ाज़ लिखे।
लबों की लरजिश,
गरदन की जुम्बिश,
बेचैन ज़ुल्फ़ों की उलझन लिख दी।
उँगलियों में लिपटते-खुलते
दुपट्टे की सिमटी सिलवट लिख दी...।
जमीन को कुरेदते पैर के अँगूठे की
हर हरकत, हर ग़फ़लत लिख दी ..।
पर पता नहीं क्यों ....
तुम्हें दिखा ही नहीं प्रेम
मेरी इस इबारत में!!!
बोलो न ..... ऐसा क्या छूट गया ,
जो तुम ढूँढ़ रहे थे ....
और मैंने नहीं लिखा ....?
क्या .... देह !!!
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