Monday 20 July 2020

पतंग


पुरुष ने कहा ,
सुनो! मैं औरों जैसा नहीं हूँ,
संकुचित नहीं हैं विचार मेरे|
बहुत वृहद है सोच मेरी,
मैं नहीं समझता औरत को
जूती पाँव की!
मेरे साथ आओ,
मैं दूँगा तुम्हें ..... अनंत आकाश !
उड़ने को, विचरने को,
खोजने को, रचने को,
मन की कल्पनाओं में ....
मनचाहे रंग भरने को|
तुम आओ तो ज़रा साथ मेरे ..
मैं बदल दूँगा तुम्हारी दुनिया!
‘मैं’ शब्द पर दिए गए विशेष बल को
स्त्री ने भी विशेषकर सुना ...
एक उपेक्षित मुस्कान पुरुष की ओर फेंक कहा –
“मैं” ???
सुनो पुरुष !
तुम्हारी महानता का यह शौक
करने को पूरा,
नहीं हूँ मैं उचित पात्र,
क्योंकि औरत हूँ मैं,
मेरे पास अपने पंख हैं,
और तुम्हें चाहिए
महज
एक पतंग !!!



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