Tuesday 28 April 2020

अंतर्मन और शरीर



मैं अंतर्मन तू  है शरीर
चंचल, चपल, विकल है तू, मैं गहन, धीर, गंभीर
मैं अंतर्मन, तू है  शरीर ....
तेरा सुख, इच्छाएँ तेरी, है अंतहीन कामना तेरी ,
अपनी मनमानी के आगे, सुनता भला तू कब मेरी,
तूने ही तो खींच रखी है, मध्य में यह अभेद्य प्राचीर|
मैं अंतर्मन, तू है  शरीर ....
मैं अपने में रहना चाहूँ, खुद को सुनना-गुनना चाहूँ,
क्यों शोर ये भीतर उठता है, प्रश्न का मैं उत्तर चाहूँ,
दुनिया के रव में पर निष्ठुर, तू कब सुनता है मेरी पीर |
मैं अंतर्मन, तू है  शरीर ....
मैं तुझमें हूँ, तू जग में है, झाँका मुझमें कब सोच भला,
तू दुनिया-सी करना चाहे, कब माना तूने मेरा कहा,
रहता कब मेरे वश में तू, हर पल व्याकुल, हर पल अधीर|
मैं अंतर्मन, तू है  शरीर ....

Sunday 12 April 2020

मैं और तुम


केस बनती जाती औरतें


अपनी संस्कृति और परम्पराओं पर
नाज़ करने वाले
तथाकथित, एक सभ्य समाज में
सरे आम ....
बस एक केस बनकर
फाइलों में दब जाती हैं औरतें
हाँ , केस बन जाती हैं
जीती जागती औरतें |
फिर शुरू हो जाती है एक लम्बी प्रक्रिया
या कहें .. प्रतीक्षा
न्याय की ,
इस न्याय को पाने के लिए
जाने कितने अन्याय झेलती हैं औरतें
हाँ,
न्याय की अंधी मूरत के सामने
खुद विवशता की मूरत बन जाती हैं औरतें |
दोहराई जाती है फिर–फिर
अमानवीयता ही नहीं
पैचाशिकता की
दुसह्य गाथा
और थरथरा जाती हैं फिर-फिर
मात्र रूह बनकर रह गई औरतें|
कुछ पोस्टरों
कुछ नारों
कुछ कैंडल मार्च के बीच
आज़ाद घूमते या
जेल में मटन करी खाते
दरिंदों के
भरे पेट और भूखी आँखों से
टपकती लार देख
फिर सुलग उठते हैं उनके
जले , क्षत-विक्षत तन
फिर एक और मौत मर जाती हैं
वो मर चुकी या
अधमरी औरतें |
हाँ, लोगों के लिए तो बस
एक केस बन जाती हैं औरतें |
और्रतों का चल-चलन का पाठ पढ़ाते
पहनने-ओढ़ने का सलीका सिखाते
उनके हँसने-बोलने पर बदचलनी का सर्टिफिकेट दिखाते
समाज की पट्टी बँधी आँखों को
दुधमुँही बच्चियों के
नुचे हुए नर्म जिस्म दिखा
लड़कों की परवरिश पर
सवाल उठाती हैं
समाज को उसकी वहशत का आइना दिखाती हैं
खुद वहशत का शिकार बनीं औरतें|
केस-दर-केस ..... केस-दर-केस
अनसुलझी गुत्थियों में उलझीं
समाज के सियाह पैरहन पर
आदमी की दरिंदगी का मैडल बन
लटक जाती हैं औरतें ......
शालिनी रस्तौगी

गुमशुदा


सोन चिरैया सी बेटियाँ

सोन चिरैया सी बेटियाँ
अपने हिस्से का दाना चुग
कैसे फुर्र से उड़ जाती हैं
पराए घर की शान
अपने घर की मेहमान हो जाती हैं
बेटियाँ
फिर कभी-कभी आती हैं
अपनी चहचहाट से
सूनापन दूर कर
घर को फिर गुलज़ार
कर जाती हैं
सोन चिरैया सी बेटियाँ

शिव-शक्ति

न स्वामिनी, न दासी शिव की, तुम संगी शिव की शक्ति।
तुम शिव में लय, शिव तुम में लीन, शिव-प्रीत रंगी शक्ति।
अर्धांग नहीं पूरक शिव की, तुम तप तुम लीला शिव की,
शिव-अनुरागी, शिव की सहगामी तुम शिव अनुषंगी शक्ति।

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