Saturday 30 September 2017

प्राण वायु

प्राण वायु आदर्श की, होती दिन-दिन क्षीण|
मानवता का दम घुटा, बढ़ा स्वार्थ संकीर्ण||
बढ़ा स्वार्थ संकीर्ण, हो किस पर क्या विश्वास|
देते थे जो प्राण, छीनते आज वे श्वास||
नैतिकता औ मूल्य, घायल बिंध लालच बाण|
प्राण-वायु हर गई, अबोध शिशुओं के प्राण ||

Thursday 28 September 2017

माया

माया को ठगिनी बता, कहते तुम दो छोड़|
मुख दौलत नदी का निज, ओर रखा है मोड़||
ओर रखा है मोड़, साधु बन कर हैं फिरते|
रहे धरम की आड़, दुष्करम सारे करते||
कितनों को ठग लिया, मोक्ष दिखला भरमाया|
काम, क्रोध, धन लोभ, न छूटी इनसे माया||

Monday 25 September 2017

मज़ाक अच्छा है|

मैं कहूँ जो, वो गलत, तेरा बयान अच्छा है|
जाने कैसे तुम लगाते हो, हिसाब अच्छा है|

महफ़िल में चर्चा तर्के ताल्लुक की अपने
आजकल मेरे रकीबों का मिजाज़ अच्छा है|

रक्स महफ़िल में ठहाकों के बीच सुना है,
याद हम तुमको बहुत आए, मज़ाक अच्छा है|



अधूरी

अधूरी ही रही मैं
न कभी पूर्ण हो पाई....
बादल, हवा, नदी आकाश, धरा
सब कुछ तो बनना चाहा था ....
सब कुछ बनी
पर आधी-अधूरी ....
बादल तो बनी पर अपना सर्वस्व न बरसा पाई|
हवा बनी पर वर्जनाओं के पहाड़ न लाघें|
नदी बन बही पर जीवन के समतल में ...
मंथर-मंथर ...
भावों के आवेग में ...
न किनारे तोड़ बह पाई|
आकाश बन कर भी मेरा फैलाव रहा
बस एक मुट्ठी ...
धरा -सी सब जज़्ब भी कहाँ कर पाई ...
हाँ सब कुछ तो बनी
पर अधूरी -अधूरी

घट रही है ऑक्सीजन

घट रही है ऑक्सीजन
 घुट रहा है दम
इंसानों में इंसानियत की
संबंधों में प्रेम की
प्रेम में विश्वास की
विश्वास में आस्था की
आस्था में समर्पण की
निरंतर घट रही है ऑक्सीजन 

झूठ के पाँव

वज़नदार होते हैं
झूठ के पाँव,
जब भी मन में चलता
रौंदता निकल जाता है....
निश्छल भोले-भाले भावों को |
और चेहरे की मासूमियत पर
छोड़ जाता है छाप
अपने कदमों की|
और मलिनता की कालिख से
विद्रूप कर देता है
वो निश्छलता|
इसके बोझ तले दबी आत्मा
छटपटाती है,
मुक्त होने को अकुलाती है|
झूठ पनपता ही है
ज़मीर को कुचलकर,
आत्मा को मसलता
आखिर पाँव झूठ के
होते हैं वज़नदार |
~~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तोगी



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