बहुत सुना दी मुरली धुन मीठी ,
अब चक्र सुदर्शन उठाओ ना।
अधर्म मिटाने इस धरती से ,
धर्म सनातन की रक्षा हित,
फिर रूप विराट दिखाओ ना ।
फिर रण-क्षेत्र में भ्रमित पार्थ है,
बंधु जिनको समझा व्याल हैं,
फिर अस्त्र त्याग कर , हाथ जोड़
अर्जुन क्लीव सम करता विलाप है,
आँखों पर आच्छादित भ्रम,
कर बैठा गांडीव त्याग है।
फिर गीता उपदेश सुनाकर,
पांचजन्य उद्घोष से केशव,
सुप्त चेतना जगाओ ना।
भक्ति कायरता न बन जाए,
शत्रु की ताक़त न बन पाए ,
अस्त्र-शस्त्र से मोह भंग
शस्त्र न दुश्मन का बन जाए,
भ्रम-मोह-विलास-कायरता,
पाश अकर्मण्यता बँधी चेतना,
सुप्त सनातन की शक्ति को
फिर झकझोर उठाओ ना
कुरुक्षेत्र सज्जित है फिर से
रणभेरी विपुल बजाओ ना
अपनी शक्ति, सामर्थ्य, समझ का
कुछ अंश युवाओं को देकर,
बाहों में शक्ति अतुल्य,
बुद्धि- विचार-विवेक बल देकर
धर्म-रक्षा , अधर्म-नाश हित,
फिर पार्थ समान बनाओ ना ।
बहुत सुना दी मुरली धुन मीठी
अब चक्र सुदर्शन उठाओ ना।
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शालिनी रस्तौगी