Pages

Thursday, 22 December 2022

बस पन्ने भर लेने से

 

बस पन्ने भर लेने से क्या, भरेगा मन का खालीपन,
क्या बाहर का शोर, मिटा, सकता अंतर का सूनापन|
 
व्यंग्य चमकता हो आँखों में, उपहास छिपा हो लहजे में,
लब पर बोल प्रशंसा के क्या, ढक पाएँगे ये जालीपन |
 
साज-सँभाल-सुधार रहा है, जिसको देखो औरों को,
दूजों को सम्पूर्ण बनाने, निकल पड़ा अधूरापन|
 
मानवता का मोल लग रहा, भाव बकें बाजारों में,
इश्क-मुहब्बत-प्यार खोजता, देखो तो दिल का पागलपन |
 
हालात और माहौल बदल देते हैं सबकी फितरत को,
सागर से मिल नदिया, खो मिठास बन गई खारापन |
 
नकलीपन की आदत इतनी, पड़ गई है इंसानों को,
रास कहाँ आएगा उनको, गुल-उपवन का ताज़ापन |
 
हर एक घिरा है अपनी ही, मजबूरी के बोझ तले,
किससे दुखड़े मन के बाँटें, कम करने को भारीपन |
 
चाँदी की ये झलक लटों में, राज़ उम्र के देती खोल,
अब तो ढंग की बातें कर लो, करोगे कब तक बच्चापन|
 
प्रजातंत्र मज़ाक बन गया सत्ता के गलियारों में,
जब-जब झूठ के शोर के आगे, सच ने धारा गूँगापन|
द्वारा
शालिनी रस्तौगी
गुरुग्राम

22/12/2022

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.