जाने क्यों एकाकी मैं?
जीवन की इस भीड़-भाड़ में,
रेलमपेल औ भाग-दौड़ में,
कहीं बची न बाकी मैं|
जाने क्यों एकाकी मैं?
साँझ ढले जब वज़्म सजे,
प्याले दर प्याले दौर चले,
कहीं दर्द में भीगी-भीगी शायरी,
कहीं सुर-लय-ताल से ग़ज़ल सजे|
कभी रेत कभी शबनम बन बिखरे,
जज्बातों से अल्फाज़ सजे |
कहीं मय छलके, कहीं अश्क़ बहे,
हँसी, ठहाके, आँसू पीड़ा,
सब हुए शराबी बहके-बहके|
पर अपनी मधुशाला में,
मय, मीना न साक़ी मैं !
सुबह-शाम-दिन-दोपहरी,
जाने क्यों एकाकी मैं?
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शालिनी रस्तौगी
22/12/2022

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