अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
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Friday, 9 June 2017
सखियाँ (सवैया)
दिन ग्रीष्म बड़े, नहिं काट कटें,मिल बैठ करें सगरी बतियाँ|
परिहास करें, मुख जोरि हँसें, हिय बात बताय रहीं सखियाँ|
कह बात पिया से हुई कब क्या, कह संग बिताइ कहाँ रतियाँ|
सनदेस पिया पहुँचाय रहीं,हिय बैन लिखें, मिल के पतियाँ||
शालिनी रस्तौगी
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
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