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Friday, 9 June 2017

लिख नहीं पाती कलम


लिख नहीं पाती कलम, कुछ कष्टों, कुछ पीड़ाओं को,

भाग्य ने लिख दिया स्वयं हो, चेहरे पर जिन व्यथाओं को|

घनीभूत दुःख की रेखाएँ, चित्रित कर देती हैं व्यथाएँ,

धूसर उदास रंगों से, भर जाती सारी कल्पनाएँ|

जीवन फलक पर रच दिया, चित्रकार ने यंत्रणाओं को|

लिख नहीं पाती कलम ......

 

यादें सुखद संयोग की, दुःख बदली बन मन पर छाती हैं,

पलकें पल-पल बोझिल होतीं, अविरल बूँदें झर जाती हैं|

तड़ित बन गिरती तड़प, बरसाती हैं उल्काओं को|

लिख नहीं पाती कलम.....

 

कहते सब कि नियति थी यह, हुआ वही जो होना था,

पर क्रीड़ा क्रूर विधि की थी, ये अनहोनी का होना था|

विदीर्ण हृदय कैसे सँभले सुन, तथ्यहीन सांत्वनाओं को

लिख नहीं पाती कलम .....

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शालिनी रस्तौगी


3 comments:

  1. जीवन की गहन अनुभूति

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    1. धन्यवाद आदरणीय ज्योति खरे जी

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  2. ati sundar....sidhaa mann me utar jati hai jab bhi padhta hu.

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