अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
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Sunday, 11 June 2017
रस प्रीत सखी सब सूख गया (सवैया)
रस प्रीत सखी सब सूख गया, मरुभूमि बनी मन भू सगरी| दिन-रैन झरे अँखियाँ जलधार, रहा मन शुष्क, कहाँ रस री| मन अंकुर प्रीत फलै-पनपे, मुरझाय रहा सगरा वन री| बदरा बन आस-निरास ठगें, झलकें, छिप जाएँ करें छल री|
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
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