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Sunday, 11 June 2017

रस प्रीत सखी सब सूख गया (सवैया)


रस प्रीत सखी सब सूख गया, मरुभूमि बनी मन भू सगरी|
दिन-रैन झरे अँखियाँ जलधार, रहा मन शुष्क, कहाँ रस री|
मन अंकुर प्रीत फलै-पनपे, मुरझाय रहा सगरा वन री|
बदरा बन आस-निरास ठगें, झलकें, छिप जाएँ करें छल री|

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