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Sunday, 11 October 2015
निज भाषा ( कुण्डलियाँ)
बरसों हैं बीते मगर,मिला न वह सम्मान।
निज भाषा निज भूमि पर, झेल रही अपमान।।
झेल रही अपमान, बढ़े दिन-दिन अंग्रेजी।
भेज दिए अंग्रेज, न अब तक भाषा भेजी।।
अब तक आशा शेष, गये दिन कल, कल, परसों।
पर भाषा का राज, सहे मन कितने बरसों।।
निज भाषा निज भूमि पर, झेल रही अपमान।।
झेल रही अपमान, बढ़े दिन-दिन अंग्रेजी।
भेज दिए अंग्रेज, न अब तक भाषा भेजी।।
अब तक आशा शेष, गये दिन कल, कल, परसों।
पर भाषा का राज, सहे मन कितने बरसों।।
मोहन रूप ( कुण्डलिया)
अपनी छवि बना कर जो, दर्पण देखा आज|
देख रूप अपना खुद ही, गोरी करती नाज||
गोरी करती नाज, चली इठला कर रानी|
साजन से मनुहार, कराऊंगी मनमानी||
अपनी छवि को भूल, सजन को ताके सजनी|
मोहन रूप निहार, सखी सुधि खोई अपनी ||
सजना चतुर सुजान ( कुण्डलिया)
बात करे हर ले जिया, बन भोला अनजान |
कौन कहे उनकी सखी, सजना चतुर सुजान ||
सजना चतुर सुजान, करे पल-पल मनमानी|
नैन मिला ठग जाय, ठगी रह जाय सयानी ||
पल में हिय बिध जात, अचूक है उसकी घात|
मीठा-सा हो दर्द, याद कर पिया की बात ||