अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
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Sunday, 11 October 2015
मोहन रूप ( कुण्डलिया)
अपनी छवि बना कर जो, दर्पण देखा आज| देख रूप अपना खुद ही, गोरी करती नाज|| गोरी करती नाज, चली इठला कर रानी| साजन से मनुहार, कराऊंगी मनमानी|| अपनी छवि को भूल, सजन को ताके सजनी| मोहन रूप निहार, सखी सुधि खोई अपनी ||
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
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