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Sunday, 11 October 2015

निज भाषा ( कुण्डलियाँ)

बरसों हैं बीते मगर,मिला न वह सम्मान।
निज भाषा निज भूमि पर, झेल रही अपमान।।
झेल रही अपमान, बढ़े दिन-दिन अंग्रेजी।
भेज दिए अंग्रेज, न अब तक भाषा भेजी।।
अब तक आशा शेष, गये दिन कल, कल, परसों।
पर भाषा का राज, सहे मन कितने बरसों।।

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