अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
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Sunday, 11 October 2015
सोलह सिंगार ( कुण्डलिया)
कजरा गजरा डाल कर, कर सोलह सिंगार। गोरी बैठी सेज पर, करने को अभिसार।। करने को अभिसार, राह पर पलक बिछाए। पल-पल बीते पहर, बिना पलकें झपकाए।। किस सौतन का आज, बना जादूगर गजरा। तडपत बीती रैन, बहा नयनन से कजरा।|
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वाह जी छाये हुए हो कुण्डलिया लिखी जा रही हैं खूब
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