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Monday, 2 June 2014

क्षणिकाएं ....

शून्य (क्षणिका)
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प्रतीक्षविहीन पल
न मन में आस, न विश्वास.
न अब कोई आहट
न मन के द्वार खटखटाहट 
हर तरफ बस एक शून्य 
निशब्द सी कुछ घड़ियाँ 
बस चलते चले जा रहे हैं 
सदियों से लम्बे 
ये प्रतीक्षविहीन पल

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अदृश्य दीवारें 
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अदृश्य दीवारें 
कुछ अदृश्य बाँध 
रोकते हैं मार्ग 
विचारों के प्रवाह का 
मन के उत्साह का 
खुशियों की गति को 
करके अवरुद्ध
मार्ग में आ अड़ती हैं
कुछ अदृश्य दीवारें .....

3 comments:

  1. प्रभावपूर्ण क्षणिकाएँ
    बहुत सुन्दर
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई------

    आग्रह है---- जेठ मास में--------

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  2. इन दीवारों को पार करना ही जीवन है ....
    भावपूर्ण क्षणिकाएं ...

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  3. गहरे भावों को अभिव्यक्ति करती सुंदर क्षणिकाएं।।।

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