Pages

Monday, 2 June 2014

एक नज़्म .. कुछ तो था


कुछ तो था 
हमारे दरम्यां
कुछ तरल सा था 
जो अश्क बन आँखों से बह गया
कुछ ठोस था
जो बोझ बन
दिल पर टिका सा रह गया
कुछ आग थी जो रात-दिन
पल-पल सुलगाती रही
कुछ बर्फ़ थी जो
जज्बातों को जमाती रही
कुछ मखमली लम्हात थे
कुछ खुरदुरे अहसास थे
कुछ चांदनी चाँद की थी
कुछ स्याही स्याह रात की थी
कुछ फूलों की नर्म छुअन
तो नागफनी सी कभी चुभन
जो टूट के भी मिटा नहीं
जो छूट के भी छूटा नहीं
वो कसक थी कोई कि दीवानगी
कोई वादा था कि इरादा था
बेवजूद था कि बावजूद था
पर
कुछ तो था .....

1 comment:

  1. कुछ तो था --- बहुत सुन्दर नज्म
    बधाई

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.