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Tuesday, 8 April 2014

अच्छा होता है ...

अच्छा होता है 
कभी - कभी 
धारा के साथ - साथ बहना
बिना प्रतिरोध 
जो घट रहा है 
उसे वैसे ही घटने देना 
क्यों हर बार बाँध बांधे जाएँ?
क्यों हर बार धार को मोड़ा जाए?
क्यों धारा के विपरीत बहने का हमेशा
संघर्ष किया जाए ?
.... क्यों नहीं
जो घट रहा है उसे घट जाने दें,
जो बन रहा है उसे बन जाने दें
जो मिट रहा उसे मिट जाने दें
आखिर नियति को निर्धारित करने वाले
हम तो नहीं
तो क्यों किसी बात के लिए
दोष दें स्वयं को ?
क्यों औरों के लिए
रोक लें स्वयं को ?
न भूत पर वश, न भविष्य अपने हाथ
तो वर्तमान में जीना
जो हो रहा उसे होने देना
कभी कभी
अच्छा होता है ........

8 comments:

  1. कभी कभी नहीं ज्यादातर :)
    अच्छी अभिव्यक्ति ।

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  2. लहर के सहारे खुद को छोड़ देना अच्छा होता है विशेष कर जब समय का पता ही नहीं क्या होने वाला है ... भावमय प्रस्तुति ...

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  3. अत्यंत ही गहन और सशक्त रचना |

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  4. बहुत खूब बहुत ही लाज़वाब अभिव्यक्ति आपकी। बधाई

    एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''हम वीर धीर''

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  5. आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (20-04-2014) को ''शब्दों के बहाव में'' (चर्चा मंच-1588) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर

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  6. सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !

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  7. साक्षी भाव से जीना इतन असहज कहाँ होता... भावपूर्ण रचना, बधाई.

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