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Wednesday, 19 March 2014

कान्हा खेलत होरी ( सवैया )


सवैया

 
रंग लगावत, अंग लगावत, ऐसन ढीठ करै बरजोरी

,
भीज गयो सब अंग भई सतरंग सखी ब्रज की सब छोरी,


पाकर स्पर्श रही हरषा उन संग बँधी अब प्रीत रि डोरी ,


रंग छुटे तन ते मन ते उतरे नहिं ये विनती सुन मोरी.

4 comments:

  1. सुंदर छंद प्रस्तुति...!
    सपरिवार रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाए ....
    RECENT पोस्ट - रंग रंगीली होली आई.

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  2. सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुति

    एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: विरह की आग ऐसी है

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  3. वाह...सुन्दर और सामयिक पोस्ट...
    नयी पोस्ट@चुनाव का मौसम

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