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Saturday, 15 March 2014

निमित्त और नियंता


नियंता
बनना चाहता है क्यों
जबकि ज्ञात तुझे भी
है यह सत्य
मात्र निमित्त है तू
नियंता तो है कोई और
फिर क्यों जीवन रथ की लगाम
थामने की कोशिश
बार-बार
पगले! नहीं जानता तू
नहीं सधेंगे तुझसे
ये भाग्य अश्व
अपनी गति से चलेंगे
अपनी दिशा में मुड़ेंगे
हाँ! इन अश्वों की वल्गा
थामे है वो नियंता
तू पार्थ
तू मात्र कर्म का अधिकारी
ताज भाग्य का मोह
अब खींच कर्म प्रत्यंचा भ्रुवों तक
रख लक्ष्य केंद्र में
मस्तक पर छलकें स्वेद हीरक
तब जगमग होगा भाग्य स्वतः
कर्म निर्मित रेखाएं देख
बदलेगा भाग्य तुम्हारा
स्वयं नियंता

12 comments:

  1. आपको भी होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

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  2. बहुत सुंदर !
    होली की हार्दिक शुभकामनायें !

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    Replies
    1. धन्यवाद सुशील जी , आपको होली की शुभकामनायें!

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  3. उम्दा प्रस्तुति...!
    होली की हार्दिक शुभकामनायें । शालिनी जी ....

    RECENT POST - फिर से होली आई.

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  4. ये भाग्य अश्व
    अपनी गति से चलेंगे
    अपनी दिशा में मुड़ेंगे
    हाँ! इन अश्वों की बल्गा
    थामे है वो नियंता
    तू पार्थ
    तू मात्र कर्म का अधिकारी

    बहुत ही सुन्दर कविता है. आपकी लिखने की शैली बहुत ही अच्छी है.

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  5. ये भाग्य अश्व
    अपनी गति से चलेंगे
    अपनी दिशा में मुड़ेंगे
    हाँ! इन अश्वों की बल्गा
    थामे है वो नियंता
    तू पार्थ
    तू मात्र कर्म का अधिकारी

    बहुत ही सुन्दर कविता है. आपकी लिखने की शैली बहुत ही अच्छी है.

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  6. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन संदीप उन्नीकृष्णन अमर रहे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  7. भाग्य का मोह हम कहाँ तज पाते हैं....
    गहन रचना....

    अनु

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  8. कर्म ही सब कुछ है ... भाग्य बदलने वाला भी वही है ...
    प्रभावी अभिव्यक्ति ... होली कि हार्दिक बधाई ...

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  9. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,होली की हार्दिक मंगलकामनाएँ।

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    रंगों के पावन पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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