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Saturday, 14 December 2013

या दिल कि सुनो दुनियावालों , या...


दुनिया मेरी सुने, इसलिए कुछ कहूँ मैं,
कि अपने दिल ही की, कही बस सुनूँ मैं,

बदी की मखमली, नेकी की पथरीली 
बता दिल राह कौन-सी  पे चलूँ मैं .

पाकीज़गी की अपनी, औरत ही दे परीक्षा 
क्यूँ शक तेरा मिटाने, हर बार ही जलूँ मैं 

जब चाहा तूने तोड़ा, मिटाया, बना दिया .
मिट्टी की मानिंद तेरे सांचों में क्यूँ ढलूँ मैं 

मुँह खोलने पे तल्ख, कहती हमें ये दुनिया,
बेहतर यही कि बस अब,खामोश ही रहूँ मैं।

3 comments:

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