स्वीकार्यता !
आजकल
थम – सी गई गई है … लड़ाई
दिल और दिमाग के बीच|
क्या हो गया है .... समझौता?
परिस्थितियों के प्रति .... स्वीकार्यता !
दोनों के मध्य,
अब नहीं होती बहस,
सहन कर लेता है सब,
अंतर्मन ..... बिना किए कोई प्रश्न|
न कोई तर्क, न वितर्क,
न कोई जद्दोजहद -
खुद को साबित करने की सही,
या किसी और को गलत,
मिट रही है ज़िद|
क्या कहा जाए इसे
निर्वात या निर्द्वंद्व
यह है विरक्ति
या आसक्तियों का शमन|
नहीं कुछ भी ऐसा अब
जिसकी लगे अनिवार्यता ..
जो है, जैसा है
अब उसके प्रति ... स्वीकार्यता !
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शालिनी रस्तौगी
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