Pages

Sunday 17 April 2022

दर्द पे अपनों के तुम, बेगाने बन के हँस दिए,


दर्द पे अपनों के तुम, बेगाने बन के हँस दिए,

गैर तो फिर गैर थे, अपनों ने ताने कस दिए।

कौन -सा दिल लाए हो, दिल है भी या पत्थर कोई,
सिसकियों चीखों के तुमने, नाम नाटक रख दिए।
चुटकियाँ चीखों की लीं, ज़ख्मों पे छिड़का नमक,
वैद्य बनकर आए थे, तकलीफ़ देकर चल दिए।
कुछ पे सितम, कुछ पे करम, ये कौन सा अंदाज़ है,
एक का हक़ छीन, दामन दूसरों के भर दिए।
बाग था बुलबुल का, शिकरों ने उजाड़ा था जिसे,
सय्यादों ने बुलबुल की तरफ़ लेकिन निशाने कर दिए।
आज अपनी आन पे आवाज़ ऊँची जो करी,
तुमने छाती पे हमारी, ज़ुल्मी के तमगे जड़ दिए।
प्रेम और इंसानियत तो फ़र्ज़ था अपना फ़कत,
दुश्मनी तुमने निभाकर, फ़र्ज़ पूरे कर दिए।
~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.