Pages

Friday 17 September 2021

ग़ज़ल - क़यामत हो गई

 



ख्वाब टूटे आस बिखरी , क्या क़यामत हो गई|

हाथ से तक़दीर फिसली, क्या क़यामत हो गई|


कल में रहे, कल में जिए, कल की बनाई योजना,

कल न आया आज ही, ये तो क़यामत हो गई|


दौड़ती  थी ज़िन्दगी , दौड़ता इंसान था

थम गया पल में सभी कुछ, क्या क़यामत हो गई|


लोग कहते हों भले, जो होना है हो कर रहे ,

अनहोनियाँ होने लगीं पर, क्या क़यामत हो गई|

शालिनी रस्तौगी

 



No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.