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Friday, 17 September 2021

ग़ज़ल - क़यामत हो गई

 



ख्वाब टूटे आस बिखरी , क्या क़यामत हो गई|

हाथ से तक़दीर फिसली, क्या क़यामत हो गई|


कल में रहे, कल में जिए, कल की बनाई योजना,

कल न आया आज ही, ये तो क़यामत हो गई|


दौड़ती  थी ज़िन्दगी , दौड़ता इंसान था

थम गया पल में सभी कुछ, क्या क़यामत हो गई|


लोग कहते हों भले, जो होना है हो कर रहे ,

अनहोनियाँ होने लगीं पर, क्या क़यामत हो गई|

शालिनी रस्तौगी

 



ग़ज़ल - चंद सिक्के सँभाले हैं|

 

ग़ज़ल

 

अजी आसाँ कहाँ इतने, नौकरी के निवाले हैं,

हज़ारों रोग ले दिल पे, चंद सिक्के सँभाले हैं|

 

तेरी आँखों में आँसू हैं, तो अपने दिल में छाले हैं,

कि वो छलकें, कि ये फूटें, छलकने ग़म के प्याले हैं|

 

यकीं औ सब्र है झूठा, इबादत झूठ है उसकी,

तेरी रहमत पे ए मालिक, जो झट उँगली उठा ले है|

 

लगें हैं बोझ दो रोटी, बाप-माँ की उन्हें अक्सर,

जो औलादें विरासत में, उनकी दौलत सँभाले हैं|

 

दिखेगी इश्क़ की सच्चाई भला कैसे बताओ तो,

नज़र में शक़-शुबह के जब, पड़े तेरे ये जाले हैं|

 

मिला है जो जिसे जितना, ये अपनी-अपनी किस्मत है,

किसी का दिन अँधेरा है, कहीं शब भर उजाले हैं|

 

उतर गहराई में मोती, अगर जो पाना चाहे तू,

लगेगा हाथ बस कीचड़, क्यों उथला जल खँगाले है|

 

शालिनी रस्तौगी

गुरुग्राम