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Monday, 25 September 2017

अधूरी

अधूरी ही रही मैं
न कभी पूर्ण हो पाई....
बादल, हवा, नदी आकाश, धरा
सब कुछ तो बनना चाहा था ....
सब कुछ बनी
पर आधी-अधूरी ....
बादल तो बनी पर अपना सर्वस्व न बरसा पाई|
हवा बनी पर वर्जनाओं के पहाड़ न लाघें|
नदी बन बही पर जीवन के समतल में ...
मंथर-मंथर ...
भावों के आवेग में ...
न किनारे तोड़ बह पाई|
आकाश बन कर भी मेरा फैलाव रहा
बस एक मुट्ठी ...
धरा -सी सब जज़्ब भी कहाँ कर पाई ...
हाँ सब कुछ तो बनी
पर अधूरी -अधूरी

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 02 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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    1. धन्यवाद ध्रुव जी,🙏

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 02 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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  3. ये अधूरापन अपनी ख्वाहिशों में पूरा है . बहुत सुंदर रचना शालिनी जी. सादर

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  4. ये अधूरापन अपनी ख्वाहिशों में पूरा है . बहुत सुंदर रचना शालिनी जी. सादर

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  5. अधूरेपन का अहसास हम सभी की जिंदगी में कभी ना कभी आता ही है । यही अहसास हमें पूर्णता की ओर अग्रसर करने का माध्यम भी बनता है । सुंदर अभिव्यक्ति!

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