अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
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Friday, 12 May 2017
सवैया - मनभावन फागुन
सवैया मनभावन फागुन झूम रहा, सर बोल रही चढ़ भाँग सखी। सरकी सर से चुनरी बहकी, अब ढंग तजा, सब लाज रखी। हरषाय लखे सजना सजनी, मुसकाय खड़ी पिय प्रेम लखी। कचनार कपोल भए जब रंग, मले सजना भर अंग सखी। shalini rastogi (चित्र गूगल से साभार)
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
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