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Thursday, 25 December 2014

हिमनद


जमी हुई थी 
हिमनद सीने में 
बर्फ़ ही बर्फ़ 
न कोई सरगोशी .. न हलचल 
सब कुछ शांत, स्थिर, अविचल
फिर आए तुम
स्पर्श कर मन को
अपने प्रेम की ऊष्मा
मेरे ह्रदय में व्याप्त कर गए
बूँद बूँद पिघल उठी मैं
बह निकली
नदी सी मैं
बर्फ से गंगा बनी मैं

1 comment:

  1. प्रेम की ऊष्मा का असर शब्दों में दिख रहा है ...
    बहुत कोमल भाव ...

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