Pages

Thursday, 11 December 2014

ज़रूरी नहीं


हर बार ज़रूरी नहीं होता
वज़ह पूछी जाए 
कभी कयास लगाना ही बेहतर होता है 
कि
बात करते करते अचानक 
कोई चुप हो गया था क्यों
साथ चलते कदम अचानक
ठिठक के रुक गए थे क्यों
क्या सोचा होगा उसने
जो आँख यूँ भर आई होगी
एक नामालूम सी मुस्कराहट के पीछे
याद किसकी छिपाई होगी
क्या हुआ कि रस्ते बदल गए होंगे
कब, कैसे, कहाँ तार रिश्तों के
नए जुड़ गए होंगे
वज़ह पूछोगे तो
बेवज़ह बात बढ़ जाएगी
राख के ढेर में छिपी चिंगारी
कुरेदने से भड़क जायेगी
वज़ह के पीछे छिपा जवाब
तुम्हारे ख्यालों से मेल खाए
क्या पता वो तसव्वुर को
चकनाचूर कर जाए
तो अपने ख़्वाबों,ख्यालों,तसव्वुर को
सहलाते रहिए
वज़ह पूछने से बेहतर है ...कयास लगाते रहिए
~~~~~~~~~~
shalini rastogi

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.