अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
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Sunday, 21 September 2014
रिश्ते ( श्रंखला -2 )
रिश्ते जो पकते नहीं समय के आंवे पर नहीं उठती उनकी महक रह जाते हैं कच्चे हाँ! नहीं सहार पाते वे निभाव का जल संग-संग 'सोहणी' के हो जाते हैं गर्क अतल गहराइयों में और रह जाते हैं उन के कुछ बुदबुदाते किस्से हाँ , अधकचरे ही रह जाते है कुछ रिश्ते !
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
अधकचरे रिश्ते भी बहुत तकलीफ देते हैं ...
ReplyDeleteभावप्रवण रचना। धन्यवाद।
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