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Friday, 12 September 2014

नार्सिसिज़म....

नार्सिसिज़म....
आत्ममोह, आत्म मुग्धता से ग्रस्त
यह मन
चाटुकारिता, प्रशंसा है प्रिय इसे
हो उठता विचलित
ज़रा - सी आलोचना पर 
करता प्रतिवाद , प्रतिकार
पर नहीं करता कभी स्वीकार
कि हो सकती है त्रुटि
उससे भी कहीं
आत्ममुग्धता के भ्रम में जकड़ा
हर सामने वाले को
जादुई आइना समझ
बस सुनना चाहता बार-बार
यही शब्द
"सर्वोत्तम. सर्वश्रेष्ठ हो तुम"
स्वीकारो या न स्वीकारो
पर सत्य यही
है छिपी
हम सब में कहीं
नार्सिसिज़म....

3 comments:

  1. अब जब कोई और मुग्ध नहीं होता है
    तो खुद ही तो हो लेना होता है । :)

    बहुत सुंदर ।

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  2. .......आत्म मुग्धता क्यों न हो ..... इसका कोई उत्तर नाही मिलता ... अच्छी कविता

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  3. सृजनकर्ता और निर्माताओं, शब्द के शिल्पियों के लिए उपयोगी नीति नियम का पाठ। इंसान भीतर से इस रोग पर उपचार करें तो उससे महान कोई नहीं।

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