अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
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Friday, 27 June 2014
मृगतृष्णा ( कुण्डलिया )
तृष्णा मृग की ज्यों उसे, सहरा में भटकाय | तप्त रेत में भी उसे, जल का बिम्ब दिखाय || जल का बिम्ब दिखाय, बुझे पर प्यास न उसकी| त्यों माया से होय , बुद्धि कुंठित मानव की || प्रज्ञा का पट खोल, नाम ले राधे - कृष्णा | सुमिरन करते साथ, मिटेगी हरेक तृष्णा ||
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteमान लेते हैं
ReplyDeleteराधे राधे
कृष्णा कृष्णा ।
bahut sundar ...maya ki mrigtirshna se koun bach paya hai bhala ..
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन हुनर की कीमत - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर, सुमिरन करते साथ मिटेगी हरेक तृष्णा।
ReplyDeleteसच है कि माया ही मानव की बुद्धि को कुंठित करती है.... प्रभावशाली
ReplyDeleteKya bat.....umda
ReplyDeleteसार्थक .. उसके सिमरन से सब दुःख मिट जायेंगे ...
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